New Delhi। हरियाणा चुनाव के लिए वोटों की गिनती शुरू होने के एक घंटे बाद Congress बीजेपी से आगे निकल गई थी। दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय में जश्न मनेना लगा। उसके बाद 10 बजे बड़ा उलटफेर हुआ और बीजेपी अचानक आगे निकल गई। इसके बाद बीजेपी आगे चलती रही और अब सरकार बनाने की स्थिति में दिख रही है। अब बीजेपी मुख्यालय में लड्डुओं, जलेबियों बंटने का दौर शुरु हो गया। वहीं, कांग्रेस कार्यालय सुनसान हो गया। हालांकि, अभी भी फाइनल आंकड़े आना है लेकिन नतीजों से बीजेपी की सरकार बनती दिखाई दे रही है।
अब बड़ा सवाल यह है कि आखिर हरियाणा में कांग्रेस को इतनी बड़ी हार क्यों झेलनी पड़ रही है? कांग्रेस के पक्ष में पूरा माहौल था। इसके बावजूद कांग्रेस कहां पीछे रह गई और बीजेपी एंटी इनकनवेंसी के बावजूद भी जीत हासिल करने में कामयाब हो रही है। इसके अलग-अलग विश्लेषण सामने आ रहे हैं लेकिन कहीं ना कहीं वर्तमान में जो कहा जा रहा है वह यह है कि कांग्रेस को इस चुनाव में उसका आत्मविश्वास ले डूबा। कांग्रेस इस चुनाव में अत्यधिक ओवर कॉन्फिडेंट के साथ मैदान में उतरी थी। उसने मान लिया था कि इस बार वह ही जीतेंगे। तभी मंगलवार सुबह ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा के घर के बाहर जिस तरीके का माहौल था, उससे ऐसा लग रहा था कि वह सीएम बनने जा रहे हैं।
चुनाव में कांग्रेस को जाटों पर भरोसा करना भी भारी पड़ गया। हरियाणा में 30 से 35 सीटों पर जाट वोटर्स का प्रभाव है। हरियाणा में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा जाट उम्मीदवार उतारे थे। उसकी यह राजनीति काम नहीं आई और इस चुनाव में बीजेपी बाजी मारती दिखाई रही है। जाट लैंड में भी बीजेपी को बढ़त मिल रही है। इसके अलावा किसानों और पहलवानों पर कांग्रेस निर्भर रही। किसानों का फैक्टर जितना मीडिया में दिखाई दे रहा था, जमीन पर उतना नहीं था। वहीं कुछ पहलवान बीजेपी के पक्ष में भी खड़े रहे थे।
चुनाव से पहले कांग्रेस नेताओं ने कहा था कि जीत निश्चित थी और उन्होंने सीएम पद के लिए प्रयास शुरू कर दिए थे। कांग्रेस के दिग्गज नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा और वरिष्ठ नेता कुमारी शैलजा के बीच सत्ता संघर्ष खुलकर सामने आ गया है, जिसके लिए पर्दे के पीछे काफी नुकसान हो रहा है। हुड्डा पर बहुत ज्यादा भरोसा किया गया। हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस ने जाट वोटों पर ध्यान केंद्रित किया, जाहिर तौर पर बीजेपी के पक्ष में गैर-जाट वोटों का एकीकरण हुआ। कांग्रेस की जीत ने राज्य में प्रभावशाली समुदाय की वापसी की ओर इशारा किया। इसके बजाय, ऐसा प्रतीत होता है कि अन्य समुदायों ने सत्तारूढ़ दल के पक्ष में भारी मतदान किया है। जाट के खिलाफ ओबासी, दलित और ब्राह्मण एकजुट हो गए। इसका अलावा नायब सिंह सैनी को कांग्रेस ने कमजोर आंका, जो अब भारी पड़ते नजर आ रहे हैं।
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